Wednesday, February 6, 2013

बिन पानी सब सून

बाघ की कम होती संख्या चिंता का विषय है। लेकिन कई बार लोग कहते हैं, की बाघों की मौत पर तो सभी चिंता  कर रहे हैं, और बाघ बचाने की बाते होती हैं, पर कभी भी लोग कम होते पानी को लेकर इतना चिंतित नहीं दिखाई देते। जबकि जल है तो जीवन है। यह बहस एक बार फेसबुक पर भी मेरे एक पोस्ट पर चली थी। 

     
         तब से ही इस बारे में लिखने की मैंने सोची थी, पर लिख नहीं सका था। कई महीने बाद आज इस बात का ध्यान आया। वाकई में जल बिन सब सून ही है। जब जल ही नहीं होगा तो धरती में जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। तेजी से सूख रहे जलस्रोत व नदियों का कम होता जलस्तर पर्यावरणविदों की पेशानी में बल डालने को काफी हैं। कहा जा रहा है की ग्लेशियर भी बहुत तेज़ी से सिमटते जा रहे हैं। ओजोन की परत में बढ़ रहा छेद तो मानो आग में घी का ही काम कर रहा है। ग्लेशियरो को इससे भी नुकसान हो रहा है। जिससे पृथ्वी में मीठे पानी का भण्डार सिमटता जा रहा है। और समुंद्र में खारा पानी बढ़ रहा है। जिसके चलते समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। जो किसी के लिए भी चिंता का विषय है। बाघ संरक्षण का भी पानी से सीधा सम्बन्ध है। कैसे आइये समझने की कोशिश करते हैं। 

          बाघ संरक्षण का सम्बन्ध जल संरक्षण से भी है। बाघ बचाने के लिए बाघ का पर्यावास भी बचाना होगा। बिना पर्यावास बचाए बाघ संरक्षण के बारे में सोचा तक नहीं जा सकता। बाघ को तभी संरक्षित किया जा सकता है, जब बाघ के लिए भरपूर आहार मौजूद हो। बाघ का आहार वह सभी जीव हैं जो घास खाते है, जैसे हिरन आदि। अब बाघ बचाने के लिए घास खाने वाले जीवो का उस पर्यावास में रहना जरूरी है। इन जीवो के लिए इस पर्यावास में घास का होना भी बहुत जरूरी है। अब घास के मैदान तभी होंगे जब वहां वन होंगे। जब वन होंगे तो वहां बारिश होगी। बारिश होगी तो वहां घास भी होगी और वन्यजीवों के लिए पानी भी होगा, क्योंकि बिन पानी सब सून। घास नहीं होगी तो घास खाने वाले जीव नहीं होंगे तो फिर बाघ आबादी की ओर  रूख करेगा। इसलिए घास और जंगल ज़रूरी है। अब जब बाघ का पर्यावास तभी बचा रहेगा जब बाघ बचा रहेगा। बाघ बचेगा तो अन्य वन्यजीव भी बचाए जायेंगे। वन्यजीव के साथ जंगल बचेगा, जंगल बचेगा तो बारिश होगी, बारिश होगी तो भूजल बढेगा। भूजल बढेगा तो जलस्रोत रिचार्ज होंगे, नदियों में पानी बढेगा, और आप और हम उसे बचा सकेंगे। इसलिए बाघ बचाओ का नारा उसके पूरे पर्यावास को बचाने के लिए है, जिससे पर्यावण भी संतुलित रह सकेगा, और वन होंगे तो कार्बन डाई ऑक्साइड कम होगी ऑक्सीजन बढ़ेगी तब ओजोन परत भी सुरक्षित रह सकेगी, जिससे ग्लेशियरों की पिघलने की गति भी कम होगी।

      

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