Sunday, June 12, 2011

संदिग्ध हालत में मिला ११ वें वनराज का शव

दिन था  मंगलवार ७ जून २०११ का जब मै रानीखेत रोड स्थित सिद्धार्थ सेल्स में बैठा हुआ था. मै विनोद चाचा के साथ चाय के घूँट भर रहा था. कि तभी आसिफ भाई का फोन आया. उन्होंने बताया कि एक न्यूज़ चैनल में बाघ की मौत का स्क्रोल चल रहा है. मै आसिफ भाई से बात ही कर रहा था कि चाचा ने कॉर्बेट के अधिकारीयों को फोन लगा कर बाघ के बारे में मालूमात शुरू कर दी. तो उन्हें बताया गया कि कालागढ़ के मैदावन क्षेत्र में बाघ कि नहीं एक लेओपर्ड की मौत हुयी है. जिसकी बेक बोन टूट गयी है, इसकी उम्र डेढ़ से दो साल है. माना जा रहा है कि यह चट्टान से गिर गया होगा. इसको घायल हालत में देखा गया था जिसके इलाज की तैयारिया की जा रही थी कि वह मर गया. इसके नर मादा के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गयी थी. मामला गंभीर था बिल्ली प्रजाति के ऊँचाई पसंद  शिकारी के लिए वन महकमे द्वारा कहा जा रहा था कि वह चट्टान से गिर गया और घायल मिला था जो अब मर चुका था. दुःख तो बहुत हुआ पर संतोष इस बात का था कि मौत वनराज की नहीं बल्कि गुलदार की हुयी थी. समय करीब १२ बजे दिन का था जब विश्वस्त सूचना आ ही गयी कि कॉर्बेट टायगर रिजर्व के कालागढ़ रेंज के खट्पानी में बाघिन का शव मिला है. मैंने सूचना देने वाले से बहस की कि बाघ नहीं गुलदार मरा है तो उसने बताया कि दोनों ही अलग-अलग स्थानों में मरे हैं. उसके बाद शुरू हुयी घटनास्थल पर पहुचने की जद्दोजहद. जो की हर बार कॉर्बेट में बाघ की मौत के बाद होती ही है. अब अधिकारीयों से संपर्क करने पर कहा गया कि आप लोगों को बाघ का शव दिखाया जायेगा. हमें १.४५ बजे कॉर्बेट पार्क के रामनगर स्थित कार्यालय में बुलाया गया. हम सभी लोग निर्धारित समय पर वहां पहुँच गए, लेकिन वहां से फिर जाने का समय फिर बदल दिया गया. हम घटनास्थल देखने की मांग करने लगे. पर कॉर्बेट प्रशासन ने हमारी मांग के प्रति अपने कान बंद कर लिए. वह उसे कालागढ़ ट्रेनिंग सेंटर में ले कर आ रहे है.जहाँ हम लोगो को उसके अंतिम दर्शनों का लाभ मिल सकेगा.अब हमें शाम के ५ बजे के बाद कालागढ़ जाने के बारे में बताया गया. काफी समय इन्तजार के बाद हमें शाम करीब ५.४५ बजे कालागढ़ जाने के लिए हरी झंडी मिली. इस बीच कॉर्बेट प्रशासन ने बाघ की मौत की वजह बाघों का आपसी संघर्ष बताया.  अब करीब ७.१५  बजे हम वहां पहुंचे, तो पता चला कि अभी बाघ का शव घटनास्थल से वहां लाया ही नहीं गया था.तब तक हम लोग अलग-अलग लोगों से बाघ की मौत के कारणों की जानकारी लेने में ब्यस्त हो गये. बातचीत से तस्वीर साफ़ होने लगी कि मौत संदिग्ध है. हमारे वहां पहुँचने के के करीब १५ मिनट बाद वहां शव लाया गया. वहां तब तक चिकित्सकों ने रात को पोस्टमार्टम करने से मना कर दिया. उनका कहना था कि रात पोस्टमार्टम करने में गलती की संभावना बढ़ जाती है इसलिए वह अब कल सुबह ही इसका पोस्टमार्टम कर सकेंगे. शव देखने से ही लगने लगा कि मौत संदिग्ध है. घटनास्थल से लौटे कुछ सूत्रों ने हमें जानकारी दी कि वहां किसी भी तरह के आपसी संघर्ष के कोई निशान मौजूद नहीं है.कालागढ़ में पहुँच कर पता चला कि कॉर्बेट प्रशासन ने कई घंटे कंडी मार्ग को भी बंद रखा था. शाम को करीब ९ बजे हमने पार्क प्रशासन से इसकी मौत के कारन जानने के लिए बातचीत शुरू की तो प्रदेश के मुख्या वन्यजीव प्रतिपालक ने बताया कि उन्होंने वहां हाथी के पैरों के निशान देखे हैं जिससे लगता है कि बाघ का हाथी से संघर्ष हुआ होगा. अब हम दूसरे दिन पोस्टमार्टम के समय भी मौजूद रहना चाहते थे. इसके लिए अनुमति लेने के बाद हम वापस रामनगर आ गए. 

        दूसरे दिन सुबह ६ बजे फिर कालागढ़ की यात्रा हुयी. अब पोस्टमार्टम में ज्यों ज्यों बाघिन की परतें उतरती रही, त्यों-त्यों उसके मौत का रहस्य गहराने लगा. बाद में चिकित्सकों ने बताया कि बाघिन की मौत सिर में चोट के कारन हुयी है.उसकी गर्दन भी टूटी हुयी है, साथ ही बाये पैर में भी गंभीर चोट है. अब यह यह चोट कैसे लगी होंगी, या बाघिन का किसी वन्यजीव से संघर्ष हुआ है, इसपर चिकित्सकों का कहना था कि बाघिन ने संघर्ष बहुत किया है, अब यह संघर्ष उसने किया किसके साथ यह नहीं कह सकते. हाँ इसकी उम्र ५-६ साल बताई गयी. इसका शव कालागढ़ रेंज के धारा ब्लाक के खतपाणी में मिला. इसके पास ही १९ फरवरी को भी  एक बाघ का शव मिला था. तब तो इन्होने मीडिया को उसके पास तक फटकने नहीं दिया था. कॉर्बेट के इस भाग में यूं पी से खुली सीमा लगी हुयी है, और यह क्षेत्र सुरक्षा के लिहाज से कॉर्बेट का सबसे संवेदनशील क्षत्र माना जाता है. बाघिन की इस मौत के साथ कॉर्बेट लेन्द्स्केप में इस वर्ष की यह ११ वे बाघ की मौत है. अफ़सोस यह कि इतने बाघों के लगातार मरने के बाद भी न तो प्रदेश का वन महकमा जागा, और ना ही राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की नीद ही टूटी है.


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