Sunday, May 29, 2011

कंकालो में बदल रहे बाघ

जीवन-मरण प्रकृति का सास्वत नियम है, जो पैदा हुआ है उसे एक दिन मरना ही है. कॉर्बेट टायगर रिजर्व और उसके आस-पास का वन क्षेत्र इनदिनों दुर्लभ वन्य जीवों की कब्रगाह में तब्दील होता जा रहा है. यहाँ शनिवार को फिर एक बाघ का सडा-गला शव संदिग्ध परिस्थियों में बरामद हुआ है. घटना रामनगर वन प्रभाग के कालाढूंगी रेंज के मूसाबंगर की है. जीवन-मरण स्वाभाविक प्रक्रिया है. लेकिन जिस कदर कॉर्बेट और उसके आस-पास के वन क्षेत्रों में बाघों की मौत का सिलसिला चल पड़ा है वह अफसोसजनक है. क्योंकि इनकी देखभाल के लिए सरकार ने एक पूरा महकमा बना रखा है, जिसके जिम्मे इनकी सुरक्षा है. लेकिन अफ़सोस इस बात का है की इस महकमे को बाघों के शव भी अब तब मिल रहे हैं जब इनके सेक्स की पहचान करना भी संभव नहीं होता. सुना तो यह है कि इनकी देखभाल के लिए सरकार ने एक पूरा अमला रखा हुआ है. जिसका कार्यालय नैनीताल में है. लेकिन हाकिम को राजधानी से ऐसा प्रेम है कि वह अपने इस कार्यालय को छोड़ देहरादून में ही बैठना ज्यादा उचित समझते है..........
 तीन मई को कॉर्बेट के सर्पदुली रेंज में भी बाघ का जो शव मिला था, वह भी इतना सड़-गल गया था की उसकी भी पहचान नर या मादा के रूप में नहीं हो पाई थी. रामनगर वन प्रभाग में तो माना जा सकता है की वन्यजीवों की सुरक्षा के अलावा भी उन्हें बहुत सारे काम हैं. हो सकता है की उन कामो की ब्यास्तता के चलते उन्हें जंगल में गश्त करने का मौका नहीं मिला. लेकिन कॉर्बेट टायगर रिजर्व तो दुर्लभ वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए ही बना है, और बाघ उसके पहले पायदान पर आते हैं. तब वहां एक हफ्ते बाद सड़े-गले बाघ का कंकाल मिलना तो उनके लिए जहाँ शर्मनाक है वहीँ यह बात चिंताजनक भी है. क्या वहां की गश्त केवल कागजी खानापूर्ति तक सीमित है. रामनगर वन प्रभाग भी उतना ही कसूरवार है जितना की सी टी आर. बरामद हुए इस बाघ की उम्र करीब ५-६ साल बताई जा रही है. विभाग इसकी मौत को संदिग्ध मान रहा है और इसके मौत के कारणों की जांच की बात कर रहा है.

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