Tuesday, April 5, 2011

संघर्ष

उत्तराखंड में वन्यजीवों की दुनिया में काफी हलचल है. वन्यजीवों के मौत के बारे में और मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाये अब रोज़ की बात हो गयी लगती है. किसी दिन किसी वन्यजीव के बारे में अशुभ समाचार आता है तो किसी दिन मानव वन्यजीव संघर्ष का अशुभ समाचार मिल जाता है. इन सारी घटनाओ के बीच राष्ट्रीय पशु के आंगणन के परिणाम ही बस कुछ दिल को तसल्ली देने वाले प्रतीत होते है.बताया जा रहा है की देश में बाघों की संख्या १४११ से बढ़कर १७०६ हो गयी है.
     कॉर्बेट टायगर रिजर्व से भी वनराज के कुनबे में बढ़ोत्तरी का समाचार मिल रहा है. बताया जा रहा है कि कॉर्बेट और आस-पास के क्षेत्रो में ५० बाघ बढ़ गए है. २००६ की गणना में यहाँ १६४ बाघ बताये गए थे. जो अब २१४ हो गए हैं. जिससे वन्यजीव प्रेमियों को कुछ राहत जरूर मिल रही होगी. लेकिन बाघों के बढ़ने के साथ ही यह टायगर रिजर्व इस वर्ष बाघों की मौतों के लिए भी जाना जा रहा है. इस वर्ष १ अप्रैल तक यहाँ के वन क्षेत्रो में ६ बाघ अपना दम तोड़ चुके हैं.
    कॉर्बेट टायगर रिजर्व के कालागढ़ डिविसन में २३ मार्च को  एक तेंदुए को ग्रामीणों ने जिन्दा जला दिया. जिसके बाद पुलिस ने ७ ग्रामीणों पर मुक़दमे दर्ज कर लिए हैं. जो अब जेल में हैं. घटना धामधार गाँव की है जहाँ तेंदुवे ने तीन ग्रामीणों को घायल कर दिया था. उसके बाद वन महकमे ने उसे पकड़ने के लिए पिंजरा लगाया. जिसमे वह फंस गया.यह तेंदुवा गौशाला में था. वन महकमे और पुलिस की उपस्थिति में इतनी बड़ी घटना घट गयी. ग्रामीण इस मामले में कितने सही थे यह तो मुझे नहीं पता. अलबत्ता विधानसभा चुनाव २०१२ को देखते हुए इस मामले में राजनीति खूब हो रही है.
      बात सुन्दरखाल की करे तो यहाँ भी २६ जनवरी को एक और युवक को बाघ ने अपना शिकार बना लिया था उसके बाद २७ जनवरी को वन विभाग ने इस बाघ को ६ हत्याओं का दोषी करार दे गोली मार दी. बाघ की मौत के बाद पता चला कि वन महकमा जिस नरभक्षी बाघ को बाघिन बताता रहा वह एक बाघ था. सवाल खड़े होने लाजिमी थे कि नरभक्षी दो थे या वन महकमे ने गलत बाघ को गोली मार दी. खैर बाघ के पेट से मानव मीट के टुकड़े मिलने से वन महकमे ने कुछ राहत ली. सबसे बड़ी बात पोस्त्मारतम में बाघ के शरीर में ५७ छर्रे मिले. यह समझ से बहार था कि इसे छर्रे मारे किसने थे.बाघ को गोली मारे जाने से वन्यजीव प्रेमियों में काफी रोष रहा. 
   अब बात मीडिया पर प्रतिबन्ध की करते हैं, १९ फरवरी को कालागढ़ रेंज के खटपानी में एक बाघ की मौत हो गयी. जिसकी सूचना मिलने पर आनन-फानन में मीडियाकर्मी घटनास्थल की और रवाना हुए. घटनास्थल से मात्र डेढ़ किलोमीटर दूर मीडिया कर्मियों को यह कहकर रोक दिया गया कि घटनास्थल कोर जोन में है. जिसके बाद मीडिया कर्मियों की प्रमुख वन संरक्षक वन्यजीव श्रीकांत चंदोला से बहस भी हो गयी. लेकिन अपनी जिद पर अड़े  सी डब्लू एल डब्लू ने मीडिया कर्मियों को वहां नहीं जाने दिया. जिससे बाघ की मौत का रहस्य गहराने लगा. और तो और वन महकमे को पूरा समय मिलने के बाद भी उसने उस दिन बाघ का पोस्टमार्टम कराने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. मामला चूँकि उत्तरप्रदेश की सीमा से लगे संवेदनशील क्षेत्र का था.और मीडिया पर पाबन्दी के साथ ही पोस्टमार्टम में देरी करना मौत पर सवाल ही खड़े करता है. वन विभाग द्वारा घोषित कोर जोन एक ऐसा इलाका होता है, जहाँ कम से कम मानव दखल दिए जाने की बात की जाती है. और मीडिया भी इससे सहमत है. लेकिन बाघ जैसे दुर्लभ वन्यजीव की मौत के बाद वहां मीडिया के चार लोगों को १५ मिनट से ३० मिनट प्रवेश देने में शायद ही कोई असहमत हो. लेकिन वन विभाग द्वारा जिस तरह से इसे परिभाषित किया जा रहा है, वह किसी के भी गले नहीं उतर रहा है. विभाग द्वारा पोस्टमार्टम में देरी १ अप्रैल को कालागढ़ के  धारा श्रोत में मरी बाघिन में भी देखने को मिला जब डॉक्टर के पैनल की मौजूदगी के बावजूद उसका पोस्टमार्टम दूसरे दिन पर टाल कर डॉक्टर की टीम को बैरंग भेज दिया गया. पोस्टमार्टम में हो रही देरी की वजह से बाघों का विसरा ख़राब हो जाता है, जिसकी जाँच नहीं हो सकती. अब यह तो वन विभाग ही जाने कि वह ऐसा क्यों करता है. १९ फरवरी को बाघ की मौत के बाद मीडिया ने अपने ऊपर लगे प्रतिबन्ध के बाद निर्णय लिया कि जब तक विभाग मीडिया के लिए कोई स्पष्ट नियम नहीं बनता तब तक वह कॉर्बेट पार्क की प्लेटिनम जुबली के कार्यक्रमों की कवरेज काले फीते बाँध कर करेगा.
    

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