महान शिकारी और वन्यजीव प्रेमी एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट के साथ यह दो विरोधाभाषी तथ्य जुड़े हुए हैं. कभी वन्यजीवों के आखेट में लगे इस शिकारी का वन्यजीवों के प्रति ऐसा प्रेम उमड़ा क़ि वह बाद में इनके संरक्षण के कार्य में जी जान से जुट गए. इस महान शिकारी को वनों और वन्यजीवों से इतना लगाव हो गया क़ि वह इनके संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक करने लगा. यह वह दौर था जब शिकार अपनी चरम पर था. आखेट में बाघ और तेंदुवे जैसे जीवों को मारना शान की बात होती थी.
२५ जुलाई सन १८७५ में नैनीताल में जन्मे जिम कॉर्बेट का बचपन कालाढूंगी में बीता. यहाँ स्थित उनका अरुंडेल नामक घर जंगल से सटा हुआ था. अपने शुरुआती दिनों से ही उन्हें शिकार का शौक था. वह अपने समकालीन शिकारियो की भांति खूब शिकार किया करते थे.बाद में उन्हें खून- खराबे से ऐसी नफरत हुई क़ि उनहोंने बन्दूक की जगह कैमरा हाथ में ले लिया. संयुक्त प्रान्त के तत्कालीन गवर्नर मेल्कॉम हेली के सहयोग से उनहोंने सन १९३६ में भारत के पहले नॅशनल पार्क की नीव रखी. जिसे हेली नेशनल पार्क के नाम से जाना गया. सन १९५२ में इसका नाम रामगंगा नेशनल पार्क कर दिया गया. जिसे कॉर्बेट की मृत्यु के बाद १९५७ में कॉर्बेट नेशनल पार्क के नाम पर रखा गया. विश्व प्रसिद्ध शिकारी से संरक्षण वादी बने जिम कॉर्बेट की कर्मस्थली छोटी हल्द्वानी को खुद ही १९१५ में गुमान सिंह बरुवा से १५०० रुपए में २२१ एकड़ भूमि खरीदी थी. इस भूमि पर उन्होंने छोटी हल्द्वानी गाँव बसाया. इस गाँव को वह आदर्श गाँव बनाना चाहते थे. यहाँ उन्होंने उत्तराखंड के पर्वतीय इलाको के १५-१६ परिवारों को बसाया. यहाँ सर्दियों में निवास के लिए १९२२ में उन्होंने आयरिश स्टाइल का एक बंगला बनवाया. देश की आजादी के बाद वह केनिया चले गये. जहाँ १९ अप्रैल १९५५ में उन्होंने अंतिम साँस ली. उनके इस आवास को १९६५ में तत्कालीन वन मंत्री चौधरी चरण सिंह के प्रयासों के बाद संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया. अब इसका प्रबंधन कॉर्बेट टायगर रिजर्व के पास है. लेकिन अफ़सोस क़ि उसका ध्यान इस ओर बिलकुल नहीं है.
आज यह ऐतिहासिक संग्रहालय अपनी दुर्दशा पर रो रहा है.संग्रहालय का भवन अपनी जर्जर स्थिति पर आंसू बहा रहा है. इसके चलते कॉर्बेट के जीवन पर प्रकाश डालती पेंटिंग्स, फोटो और कॉर्बेट द्वारा उपयोग की गयी सामाग्री भी बदहाल हो चली है. संग्रहालय के अंदर रोशनी की पर्याप्त ब्यवस्था नहीं होने से पर्यटकों को मायूसी ही हाथ लगाती है. कॉर्बेट ग्राम विकास समिति व संग्रहालय के इंचार्ज द्वारा प्रबंधन से बार-बार आग्रह करने के बावजूद भी उस पर कोई कार्यवाही नही हुई. संग्रहालय की चारदीवारी भी क्षतिग्रस्त हो गयी है.
यह संग्रहालय कालाढूंगी-नैनीताल-रामनगर तिराहे पर स्थित है. प्रतिवर्ष यहाँ हजारों सैलानी जिम कॉर्बेट के बारे में जानने आते हैं . जिससे सरकार को करीब २.५ लाख रुपए का राजस्व भी प्राप्त होता है. बावजूद इसके इस संग्रहालय के रख रखाव पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है. जिससे स्थानीय जनता में रोष ब्याप्त है. हालात इतने बदतर हो चले है क़ि सिंचाई के अभाव में कॉर्बेट द्वारा लगाये गए आम और लीची के पेड़ सूख रहे है. जबकि कॉर्बेट द्वारा सिंचाई गूल की ब्यवस्था की गयी थी. वर्तमान में यह गूल कई वर्षों से बंद पड़ी है. इस ओर भी टायगर रिजर्व प्रशासन कोई ध्यान नही दे रहा है. आलम यह है क़ि केनिया से जगत सिंह को लिखे गये पत्र भी संग्रहालय से विगत दो माह से गायब है. अपने जीवन में संरक्षण में लगे जिम कॉर्बेट की यादों को आज खुद संरक्षण की दरकार है. विभाग ने यदि इस ओर शीघ्र तव्वजो नहीं दी तो यह संग्रहालय इतिहास के पन्नो पर सिमट कर रह जाएगा.
लेखक राजेश पंवार वन्य जीव प्रेमी हैं . उनका पता निम्नलिखित है -
Rajesh Panwar
Executive Director
Corbett Gram Vikas Samiti
Corbett's Village- Chhoti Haldwani
Kaladhungi, Nainital(UK)- २६३१४०
very unfortunate state of affairs . i condemn the people responsible for this gross misconduct !
ReplyDeleteachchhi janakari hai sir
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