Sunday, October 17, 2010

फाउंड़ेशन की अनूठी पहल

कॉर्बेट के आस-पास दो मुख्य नदिया बहती हैं. रामगंगा और कोसी नदी. इन नदियों में प्रकृति के कुछ खास जीव भी वास करते हैं. जो मानव भूलों और अन्य कारणों से अब दुनिया में बहुत कम बचे हैं. विलुप्ति की कगार में पहुंचे इन जलीय जीवों में एक मछली है महाशीर. जिसे टायगर ऑफ़ द वाटर के नाम से भी जाना जाता है. यह मछली मीट के चलते सदियों से शिकार होती रही है. मछली के शोकिनो को इसका मांस बहुत पसंद आता है. इसीके चलते इसके संरक्षण की जरूरत आन पड़ी है. इस मछली का शिकार प्रतिबंधित है. बावजूद इसके इस मछली का जीवन खतरे में ही रहता है. कोसी और रामगंगा में चोरी-छिपे इसका काफी शिकार होता रहता है. और संरक्षण में लगे लोग इस और आँखे मूंदे हुए हैं.
       

             रामनगर में  इस मछली को बचाने की एक अनूठी पहल की गयी है. इस मछली को बचाने के लिए कॉर्बेट फाउंड़ेशन आगे आया है. यह एक स्वयंसेवी संस्था है. जो वन्यजीवों के लिए काम में लगी हुयी है. इस संस्था ने बरसात के पानी में बह रहे इसके बच्चों को सहजने का काम शुरू किया है. तेज़ बहाव में इसके बच्चे कोसी नदी में बैराज के नीचे चले जाते हैं. जहाँ पानी कम हो जाता है. और कुछ दिनों में यह पानी सूख भी जाता है. जिससे यह अकाल मौत मर जाते हैं. या मछुआरों का आसान शिकार बन जाते है. इस संस्था ने इन्हें यहाँ से पकडकर फिर कोसी नदी की मुख्य धरा में डालने का काम शुरू किया है. शुरूआती दौर में दो दिनों तक चले इस कार्यक्रम में लाखों मछलियों के बच्चों को जीवनदान मिला है. संस्था ने इस काम में स्थानीय मछुआरों को ही लगाया है. जिसका मकसद इन मछलियों की जान बचाना तो है ही, साथ ही इन मछुआरों को इस मछली के बारे में जागरूक करना भी है. इस दौरान संस्था के लोगों ने मछुआरों को इस मछली की जल में उपयोगिता भी बताई. निशिचित रूप से फाउंड़ेशन की यह पहल ना केवल स्वागत योग्य है बल्कि सराहनीय भी है. यहाँ में यह भी बता दूं क़ि इसमें ना केवल महाशीर बल्कि अन्य प्रजातियों की मछलिय भी बचायी गयी हैं. जो एक बार फिर कोसी के इस निर्मल जल को शुद्ध रख कर पर्यावरण को बचाने की मुहिम में जुट जायेंगी.

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