Saturday, August 14, 2010

save the tiger part-3


स्वतन्त्र भारत में बाघों की स्थिति 
बाघों की इस दयनीय हालात के लिए बहुत हद तक राज्य सरकारें भी दोषी हैं. प्रत्येक टायगर रिज़र्व किसी ना किसी राज्य में स्थित है. और राज्यों की लापरवाही का आलम यह है क़ि उनके टायगर रिजर्व में स्टाफ ही पूरा नहीं है. और जो स्टाफ है भी वह भी अपनी उम्र के ढलान पर है. देश भर के इन टायगर रिजर्व में वन कर्मियों की भारी कमी के साथ ही संसाधनों की कमी भी कमी है.. हालात उत्तर से दक्सिन तक कमोबेश एक से ही हैं. यह महकमा अपने फ्रंट लाइन स्टाफ की कमी की मार झेल रहा है. बाघ को बचाने के लिए बने इन रिजर्व में जब स्टाफ की ही भारी कमी हो तो इन्हें पोचर से बचाने की  बात भी बेमानी लगती है. स्टाफ की भारी कमी से जूझ रहे इन टायगर रिजर्व में तैनात अधिकारी व कर्मचारी किसी  तरह से अपनी नौकरी बचाने के प्रयास में लगे रहते हैं. और सीमित संसाधनों से किसी तरह काम चला रहे हैं. और इन वन कर्मियों की नियुक्ति राज्य सरकारें ही करती हैं. लेकिन राज्य सरकारें वन महकमे के प्रति हमेशा से उदासीन ही रहीं हैं. इसका कारण भी साफ़ है की वन महकमे के विकास से राजनैतिक दलों का वोट बैंक नहीं बढ़ता है. बल्कि उनको लगता है क़ि वन अधिनियम के चलते विकास का पहिया ही जाम होता है और जनता की नाराजगी का सामना राजनीतिज्ञों को करना पड़ता है. राज्य सरकार की लापरवाही का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं की केंद्र सरकार से कॉर्बेट टायगर रिजर्व में एक ११२ सदस्यीय स्पेशल टायगर प्रोतेक्शान फाॅर्स का गठन किया जाना है. जिसके लिए केंद्र सरकार से धन मिले हुए भी करीब ढेड साल का अरसा बीत चुका है. लेकिन राज्य सरकार की अनदेखी के चलते यह अभी तक गठित नहीं हो पायी है, जबकि इससे राज्य के ११२ युवाओं को रोजगार ही नसीब होता. यह हालात तब हैं जब राष्ट्रीय पशु को सर्वधिक खतरा ही अवैध शिकार का है. और देश में बाघ के अस्तित्व बचाने के प्रयास चल रहे हों. रिजर्व में जब वन  कर्मियों और संसाधन का इतना टोटा हो तो आप आसानी से अंदाजा लगा सकते है क़ि बाकी वन प्रभागो की स्थिति क्या होगी. यहाँ अधिकारी अपनी  लाचारी को दर्शाने में भी हिचकता है. इसका कारण सरकार का पालिसी मैटर हो या पोचरों से अपनी स्थिति को छिपाए रखने की मजबूरी हो.  टायगर रिजर्व में ही जब सुरक्षा का ऐसा ताना बना हो तो उससे लगे वन क्षेत्रों की स्थिति क्या होगी यह स्वयं ही सोची जा सकती है. देश क़ि सीमा नेपाल, तिब्बत और बंगलादेश से लगी होने के कारण यह शिकारियों के लिए एक मुफीद जगह साबित हो रही है. सरकारों के हाल यही रहे तो आने वाले दिनों में बाघ फोटो तक सिमट कर ना रह जाये. बात यदि कॉर्बेट की जाये तो इसकी राह में भी कई चुनोतिया हैं. यहाँ बढ़ता बेलगाम पर्यटन के चलते यहाँ बने रेसोर्ट में देर रात तक होने वाली पार्टियों की तेज़ रौशनी, साउंड सिस्टम को तेज़ आवाज़ में बजना, पटाखों का शोर, रिसोर्ट का कूड़ा और सीवर का पानी कोसी नदी में डालना आदि ऐसी समस्याएँ जिनसे निजात पाने का हल खोजना होगा. इसके अलावा यह रिसोर्ट तेज़ी से विवाह स्थल में तब्दील होते जा रहें हैं. जिसे रोकने के लिए भी एक इमानदार कोशिश क़ि जरूरत है. बढ़ते रिसोर्ट के चलते यहाँ ढिकुली से मोहान तक का वन्य जीवों का कोरिडोर भी बंद हो गया है. अब बचे हुए कोरिडोर बचाने की ओर भी सभी को ध्यान देना होगा. इन सब गतिविधियों के चलते मानव वन्य जीव संघर्ष बढ़ रहा है. जिसका सबसे ज्यादा नुकसान इन निरीहों को उठाना पड़ रहा है. इसके लिए आपको और हमको ही बचाने के प्रयास करने होंगे. देश का राष्ट्रीय पशु खतरे में है और इस स्वतंत्रता दिवस पर अपनी स्वतंत्रता के साथ  ही इसकी स्वतंत्रता के लिए भी कुछ बहस करें और इसे बचाने का संकल्प लें.. 

2 comments:

  1. wild life k bare me to yar tonmne school khol diya. badhhaeeee dost. aese partyas kitne log karte he...... auor kisko padi he.... wild life k bare me jannmnnnne ki...... eeeesss blekmeling k jamane me tumhare is paryas ko laaaaaal salaaaaaaaaaaaammmmmmmmmmmmmmmmmmmm !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

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  2. आपकी चिंताएं जायज हैं भी तुम क्या कोई और भी जो बाघ को बचना देखना चाहता है. वो जरुर आपस चिंतित होगा दोस्त. आपने ब्लॉग के जरिरे आपनी बेबाक राय दी है वो आपनी जगह सही है. दूसरों के परवाह किया बिना काम करते रहो. तुम्हे ब्लॉग की बधाई. चन्दन बंगारी

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