इसके अलावा इस बार की गणना का कार्य २००६ की तर्ज पर ही कैमरा ट्रेप विधि से ही किया जा रहा है. इसके लिए भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून का सहयोग लिया जा रहा है. अब देखना यह होगा की सरकार और कई गैर सरकारी संगठनो के बाघ बचाने के प्रयास इस गणना के बाद क्या गुल खिलाते हैं. या यूँ कहें क़ि उनके इन प्रयासों से बाघ बचाने में कितनी सफलता मिली है. यह तो अब गणना के बाद ही साफ हो पायेगा.......... जारी..................
कॉर्बेट न्यूज़ ब्लॉग वन्यजीवों को समर्पित है. इस ब्लॉग का उद्देश्य वन्य जीवों का संरक्षण करने के लिए लोगों को प्रेरित करना है.
Thursday, August 12, 2010
save the tiger, part-2
इससे पूर्व हम देश और दुनिया में बाघों की कम होती संख्या पर चर्चा कर रहे थे. देश में बाघों की संख्या का पता लगाने के लिए प्रत्येक ४ वर्षों के अन्तराल पर टायगर सेंसेस किया जाता है. अखिल भारतीय स्तर पर होने वाली इस गणना का एक सत्य जो हमेशा निकलकर सामने आया वह यह है क़ि हर बार क़ि गणना में बाघों क़ि संख्या कम होती चली गयी. इस वर्ष भी देश में अखिल भारतीय बाघ गणना का कार्य किया जा रहा है. जिसके मार्च २०११ तक पूरा होने क़ि उम्मीद है. देश में जहाँ २००२ की बाघ गणना में ३६४२ बाघ थे वहीँ २००६ के आते आते इनकी संख्या १४११ में आकर सिमट गयी. इस बार की गणना या आगणन नक्सल प्रभावित क्षेत्रों नहीं हो पायेगा. और इन क्षेत्रों में बाघ क़ि स्थिति भी अच्छी नहीं बताई जा रही है. इस समय भी देश के बहुत से टायगर रिजर्व में बाघों की स्थिति अच्छी नहीं है. सरिस्का व पन्ना के हालात किसी से छिपे नहीं हैं. सरकार प्रतिवर्ष प्रोजेक्ट टायगर में अरबों रुपये खर्च कर रही है. लेकिन फिर भी हालात हैं क़ि सुधरने का नाम ही नहीं ले रहे हैं. अपितु इसके विपरीत देश में बाघ बहुत तेज़ी से समाप्त होते चले जा रहे हैं. देश में एक के बाद एक दम तोड़ रहे इन बाघों की मौत का सच भी बहुत बार सामने नहीं आ पाता. हर बाघ क़ि मौत के बाद उसके पोस्टमार्टम के लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने नियम तो कई बनाये हैं. बावजूद इसके इनकी मौत का कारण बहुत ज्यादा स्पष्ट नहीं हो पाता. बाघ के शव को मिलने के बाद इसके पोस्टमार्टम तक शव को डी फ्रीज़र में रखने का भी नियम है लेकिन यहाँ तो आज भी कई टायगर रिजर्व के पास डी फ्रीज़र क़ि सुविधा ही नहीं है. जंगल में कई दिनों बाद मिले शव पहले ही इतने सडे गले मिलते हैं, क़ि उनका पीऍम भी एक औपचारिकता भर ही लगता है. और शव मिलने के बाद एन टी सी ए के नियमो का पालन करते करते और देर ही होती है जिससे वह शव ज्यादा ख़राब हो जाता है. उसमे डी फ्रीज़र ना होना बहुत खलता है. ख़राब हो चुके शव से किस तरह का बिसरा मिलता होगा यह सोचा जा सकता है. और इस बिसरे को लैब तक पहुचने में भी समय लगता है. इतनी देर में उस सड चुके बिसरे से वैज्ञानिक क्या नतीजे निकालेंगे आप खुद ही सोच सकते हैं. इससे यह भी पता नहीं चल पाता क़ि बाघों में किसी बीमारी का संक्रमण तो नहीं है.
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