कॉर्बेट नॅशनल पार्क ने अपने ७५ सालों का सफ़र पूरा कर लिया. इस पार्क को देश के पहले नॅशनल पार्क होने का गौरव प्राप्त है. बीता साल कॉर्बेट की प्लेतिनम जुबली का साल था. यह मेरे लिया भी गौरव की बात थी कि इस वर्ष में मैं कॉर्बेट पार्क के हर महत्वपूर्ण घटना को देख सका, क्योंकि इस तरह का अवसर अब २५ साल बाद ही आएगा जब यह पार्क अपनी शताब्दी वर्ष में होगा. २०१० में हुवे बाघ आगणन में यहाँ बाघों की संख्या में एक बार फिर इजाफा हुआ. कॉर्बेट लेंड स्केप में बाघों की संख्या १६४ से बढ़कर २१४ पर जा पहुंची. बताया जाता है कि यह आगणन २१८५ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में किया गया था. लेकिन इस वर्ष में सबसे दुःख का विषय यह रहा कि यह वर्ष कॉर्बेट लेंडस्केप में सबसे अधिक बाघों की मौत का भी रहा. इस वर्ष यहाँ १५ बाघों की मौत हुयी. जिसमे आठ बाघ कॉर्बेट टायगर रिजर्व में, ६ बाघ रामनगर वन प्रभाग में, और एक बाघ तराई पश्चिमी वन प्रभाग ने खोया. इसमें भी दुखद यह रहा कि एक बाघ का शावक ढेला में अज्ञात वाहन से रोड एक्सिडेंट में मारा गया. इसके अलावा दो बाघ इतने ख़राब स्थिति में मिले कि उनका सेक्स भी पता नहीं चल सका.
२५ जनवरी २०११ को कॉर्बेट टायगर रिजर्व में मिले बाघ के शव के बाद तो मानो यहाँ बाघों की मौत का सिलसिला ही चल पड़ा. इन सोलह महीनो में अब तक यहाँ १९ बाघों की मौत हो चुकी है. इस वर्ष अब तक इस लेंड स्केप में चार और बाघ हम खो चुके हैं. इन चार में तीन कॉर्बेट टायगर रिजर्व में, और एक बाघ तराई पश्चिमी वन प्रभाग ने गवाएं हैं. इन सोलह महीनो में अब तक हमने करीब सवा बाघ प्रति माह की औसत से खोये हैं. इन बाघों में कॉर्बेट में बाघ के २ नर शावको के साथ ही एक ऐसे बाघ का कंकाल मिला है जिसके सेक्स का भी पता नहीं लग सका. अंतिम बाघ तराई पश्चिमी वन प्रभाग २४ अप्रैल को घायल मिला. जिसे बचाया नहीं जा सका. इसकी मौत संदिग्ध परिस्थितियों में हुयी है. जिस पर कई सवाल उठ रहे हैं. इसकी मौत पर पहले वन विभाग ने इसे दो बाघों का संघर्ष करार दिया, लेकिन पोस्ट मार्टम में इसके बाये कंधे कि हड्डी टूटी हुयी मिली.और बाघ से संघर्ष के भी ऐसे कोई निशान नहीं थे. जिसके बाद इसकी मौत के कारणों की पड़ताल में महकमा लगा हुआ है. बाघों की मौतों की बढती संख्या अब वन्यजीव प्रेमियों के लिए जहाँ चिंता का सबब बनती जा रही है. वहीँ महकमे द्वारा खुद को बचाने के लिए हर मौत को प्राकृतिक और आपसी संघर्ष बताने से कहीं अनजाने में इनके हत्यारों का संरक्षण तो नहीं हो रहा है. बाघों के कंकालों का मिलना भी चिंताजनक है. इस कदर सड़ चुके कंकाल जिनकी सेक्स तक की पहचान न हो सके, उसके पोस्ट मार्टम से कुछ पता लग पाने की संभावना भी नहीं के बराबर ही रहती है. ऐसे में बाघ संरक्षण की पूरी कार्यप्रणाली में सवाल उठना भी लाजिमी ही है.
Very informative and useful. Thanx for.
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