Monday, July 25, 2011

जिम कॉर्बेट की जयन्ती आज : बाघ संरक्षण दिवस के रूप में मनाने की उठने लगी मांग

आज हम सभी लोग जो की बाघों के संरक्षण मैं लगे हैं या फिर इनकी फिक्र करते हैं वो जिम कॉर्बेट के नाम से भी थोड़े बहुत परिचित हैं. भारत का पहला तथा विश्व प्रसिद्ध बाघ संरक्षण क्षेत्र  कॉर्बेट नेशनल पार्क भी उन्ही के नाम से जाना जाता है. कॉर्बेट नेशनल पार्क जिसकी स्थापना  ८ अगस्त १९३६ में हुई उसका नाम हैली नेशनल पार्क रखा गया था. भारत की आजादी के बाद जैसा की सारे भारत मैं हुआ इस पार्क का नाम भी एक अंग्रेज के नाम से हटा कर (सन १९५४ मैं) रामगंगा नदी के नाम पर रामगंगा नेशनल पार्क कर दिया गया. जिम कॉर्बेट के मृत्यु तो सन १९५५ मैं हुई परन्तु भारत मैं उनके द्वारा बाघ संरक्षण के लिए किये गए प्रयासों को देखते हुए सरकार ने १९५७ मैं पुनः इस पार्क का नाम रामगंगा से कॉर्बेट नेशनल पार्क कर दिया गया. 


इस बात पर कई लोगों मैं जिज्ञासा भी है और मतभेद भी की एक संरक्षित क्षेत्र का नाम एक शिकारी के नाम पर या एक विदेशी के नाम पर क्यूँ रखा गया है. यहाँ पर मेरा उद्शेय इसके लिए कोई तर्क वितर्क का नहीं है वरन जो थोडा बहुत मेरी समझ है उसे रखने का है. जिम कॉर्बेट का जन्म गुलाम भारत मैं २५ जुलाई सन १८७५ को नैनीताल मैं हुआ था. तो एक तरह से वे भारतीय थे. जिम कॉर्बेट ने बेशक शुरू शुरू मैं शिकार किया तथा यह उनका शौक था परन्तु जिस दिन उन्हें लगा की यह एक गलत चीज है उन्होंने शौकिया शिकार करना छोड़ दिया और केवल हिंसक पशुओं का शिकार करने का प्रण किया. हम सभी जानते हैं की उस समय जबकि उत्तराखंड के पहाड़ों मैं बाघ एवं तेंदुए ने नरभक्षी हो कर लोगों का जीवन दूभर कर दिया व स्थानीय शिकारी उनको मारने मैं नाकाम रहे तो जिम कॉर्बेट ने अपने जीवन की परवाह न करते हुए इन दुर्गम जगहों मैं पहुँच कर इनका शिकार (यद्यपि नरभक्षी को मारने के लिए शिकार शब्द मुझे ठीक नहीं लगता) किया और लोगों को इनसे मुक्ति दिलाई. जिम कॉर्बेट इस सबसे अलग हमेशा ही स्थानीय लोगों की मदद को तैयार रहते थे और इसी वजह से उन्हें गोरा साधू भी कहते थे.

जिम कॉर्बेट ने शिकार छोड़ने के बाद फोटोग्राफी मैं भी अपना कौशल दिखाया परन्तु जिम को सबसे ज्यादा प्रसिद्धि मिली उनके द्वारा लिखी पुस्तकों से. जिम कॉर्बेट ने अपने अनुभुवों के आधार पर छह किताबें लिखी - मैन इटर्स ऑफ़ कुमाउन, मैन इटिंग लेपर्ड ऑफ़ रुद्रप्रयाग, टेम्पल टाइगर, माई इंडिया, जंगल लोर, ट्री टॉप्स व मोर मैन इटर्स ऑफ़ कुमाउन. इन सभी किताबों में जिम ने न सिर्फ अपना ज्ञान आम लोगों तक पहुँचाया है वरन भारत एवं भारत के लोगों का एवं उस समय का सजीव चित्रण किया है. उनकी एक पुस्तक 'माई इंडिया' के शीर्षक से हम उनके भारत के प्रति प्रेम को समझ सकते हैं. खैर आज इस लेख को लिखने का मुख्य कारण हैं की 25th  जुलाई को जिम कॉर्बेट का जन्म दिन है और अपने मृत्यु के कई वर्षों के बाद भी जिम कॉर्बेट हम सभी के जेहेन में जिन्दा हैं.
जिम कॉर्बेट उन सभी के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं जो की वन एवं वन्य जीवों से प्यार करते हैं और उनके संरक्षण में लगे हुए हैं. जिम की दूरदर्शिता का परिचय इस बात से मिलता है की उस समय जब सभी बाघ को मारने में लगे हुए थे एक जिम ही थे जिन्होंने उसे बचाने के प्रयास किये. यदि आज हम फक्र से कहते हैं की कॉर्बेट पार्क हमारी रास्ट्रीय धरोहर है तो इसकी स्थाफना के पीछे जिम का भी अमूल्य योगदान है. आज जब 2011 में हम कॉर्बेट पार्क की platinum jubilee मना रहे हैं तो यह सब इसलिए संभव हो रहा है की इसकी स्थाफना १९३६ को हुई और जिम कॉर्बेट ने इसके लिए पुरजोर मेहनत की. उनके जन्म दिन को हम और भी यादगार बना सकते हैं अगर हम 25th  जुलाई को बाघ संरक्षण दिवस के रूप में मनाएं. शायद यह हमारी एक महान व्यक्ति को एक सच्ची श्रद्धांजली होगी. आखिर बाघ संरक्षण ही तो उनका लक्ष्य था. 
               लेखक संजय छिम्वाल, वन्यजीव प्रेमी हैं.

1 comment:

  1. समस्त संरक्षण वादियो को कोर्बेट साब के जन्म दिवस कि शुभ कामनाये.

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