Monday, December 13, 2010

पर्यटन बनाम संरक्षण

देश के प्राणी उद्यानों और अभ्यारण्यों में पर्यटकों के प्रवेश पर इन दिनों बहस छिड़ी हुयी है. इन उद्यानों और अभ्यारण्यों में पर्यटन के नाम पर पर्यटकों को प्रवेश दिया जाना चाहिए या नहीं यह एक बहुत बड़ा मुद्दा है. खासकर उत्तराखंड जैसे नवोदित राज्य के लिए जिसमे पर्यटन एक बहुत बड़े रोजगार के रूप में उभर रहा हो. इस मुद्दे को मीडिया और संरक्षण में लगे लोगों द्वारा हमारे संरक्षित क्षेत्रों पर पर्यटन द्वारा बढ़ रहे दबाव से उत्त्पन्न समस्याओं की वजह से उठाया जा रहा है. इस विषय पर दोनों पक्षों मीडिया और संरक्षणवादियों और पर्यटकों व पर्यटन उद्योग के अपने तर्क व चिंताएं हैं.


       पहले हमें संरक्षित क्षेत्रों के निर्माण के उद्देश्य की अवधारणा को समझाना होगा. संरक्षित क्षेत्रों का निर्माण मुख्य रूप से हमारी जैव विविधता के संरक्षण के लिए किया जाता है.  इस समय दुनिया में तेज़ी से विकास हो रहा है, इस कारण कई पौधों और पशु प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा पैदा हो गया है. विकास की गति मशीनों के प्रयोग के कारण कई सौ गुना हो गयी है. आज हम तेज़ी से अपने सीमित बचे प्राकृतिक संसाधनों का शोषण कर रहे हैं. हमें लगता है क़ि इन संसाधनों पर सिर्फ हमारा अधिकार है और हमें इनके दोहन का पूरा अधिकार है. हम यह भूल जाते हैं क़ि प्रकृति में हमारे साथ ही कई अन्य जीव भी इसी संसाधन पर निर्भर हैं. और उनका इनपर हमारे बराबर ही अधिकार है. संरक्षित क्षेत्र को बनाने का मुख्य उद्देश्य भी यही है क़ि वन्य जीवों के साथ ही पेड़ पौधों की प्रजातियाँ सुरक्षित रह सके.
        भारत में संरक्षित क्षेत्रों के कई प्रकार हैं. राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभ्यारण्य, आरक्षित वन, बायोस्फियर रिजर्व आदि. इन सभी क्षेत्रों में विभिन्न नियम व मानदंड है. जब भी हमारी जैव विविधता की रक्षा के लिए ऐसे संरक्षित क्षेत्रों की घोषणा करते हैं. वास्तव में उन्हें अपने भविष्य के जीवित रहने के लिए रक्षा करते हैं. जरा सोचिये जब भारत में इन थोड़े बचे जंगलों की रक्षा के  लिए कोई नियम ना हो तो क्या यह जंगल कुछ महीनो के लिए भी बच पायेंगे? नहीं हम लालची मनुष्य इनका अंधाधुंध दोहन करेंगे और यह बहुत जल्द ही गायब हो जायेंगे.
      संरक्षित क्षेत्र में पर्यटन की अनुमति दी जानी चाहिए या प्रतिबन्ध लगा दिया जाना चाहिए ? वन्यजीव संरक्षणवादियों और मीडिया का मानना है क़ि पर्यटन वन्य जीवन में दबाव पैदा कर रहा है, और पर्यटकों के कारण इनके आवास प्रदूषित हो रहे हैं. जबकि पर्यटन उद्योग का दावा है क़ि वे विदेशी पर्यटकों से एक अच्छी राशि ला रहे हैं, और इससे रोजगार पैदा हो रहा है जिससे बहुत से बेरोजगारों के हाथों को काम मिल रहा है. साथ ही यह अन्य उद्योगों के मुकाबले एक साफ़ उद्योग है. हम जानते हैं क़ि वन्यजीव पर्यटन के लिए आया पर्यटक जंगल जायेगा ही, और उससे वन्यजीवों की शांत दुनिया में खलल तो पड़ेगा ही. लेकिन जैसा क़ि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, पर्यटन हमेशा जंगली जानवरों के लिए पूरी तरह नुकसानदायक नहीं है. हमने पूर्व में देखा है की कैसे पर्यटकों ने संरक्षित क्षेत्रों से वन्य जीवन के मुद्दों को जनता के ध्यान में लाने में हमारी मदद की है.
       भारत में वन और वन्य जीवों का प्रबंधन वन विभाग द्वारा किया जाता है. एक आम आदमी वन और वन्य जीवन का प्रबंधन में प्रत्यक्ष रूप से कुछ नहीं कर सकता. जंगली जीवन के लिए हमारे जंगलों में पर्यटक एक प्रहरी की तरह हैं, और इस तरह वह वन्य जीवन के बारे में पता कर सकते हैं. हम सभी जानते हैं क़ि सरिस्का में क्या हुआ? वह एक पत्रकार ही था जिसने सरिस्का से बाघों के विलुप्त होने के बारे में सच बताया था. अगर पर्यटन जिम्मेदार तरीके से किया जाता है तो इसे जारी रखने में कोई बुराई नहीं है. सरकार पर्यटन को ठीक करने के लिए कई कदम उठा सकती है. इस सब के ऊपर आम जनता के बिना वन्य जीवों की रक्षा नहीं की जा सकती. यदि पर्यटन बंद कर आम आदमी को वन्य जीवन से दूर कर देंगे तो वह क्यों संरक्षण में आगे आयेंगे, जबकि बेरोजगारों का एक बड़े तबके को इससे रोजगार भी मिल रहा हो.
       संरक्षित क्षेत्रों में पर्यटन का मकसद ही लोगों को जागरूक करना है. पार्क में पर्यटन वन्य जीवों के प्राकृतिक ब्यवहार के बारे में समझाने का तरीका है. यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए की पर्यटन को सही तरीके से किया जाए. सबसे अच्छा तरीका है इको पर्यटन जिसे लागू करने की जरूरत है. दुर्भाग्य से हम इस अभ्यास का पालन नहीं कर रहे हैं, और हमारे जंगल तेजी से नष्ट हो रहे हैं. संरक्षित क्षेत्रों में पर्यटन एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है. परन्तु हम अपने संरक्षित क्षेत्रों के नुकसान की कीमत पर इसे जारी नहीं रख सकते. पर्यटन पर रोक या प्रतिबन्ध पर्यटन समस्याओं का समाधान नहीं है. हमें अवैध शिकार, मानव-वन्यजीव संघर्ष रोकने, पर्यावास सुधार और वन्य जीव गलियारों के पुनः स्थापना के लिए काम करने की जरूरत है. पर्यटन में प्रतिबन्ध लगाने से हमें वन्यजीवों के संरक्षण में मदद नहीं मिलेगी. अपितु वास्तव में यह वन और उसके पसंदीदा जंगली जानवरों से प्रकृति प्रेमी को वंचित ही करेगा.
              लेखक संजय छिम्वाल, प्रकृति प्रेमी हैं.

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