Saturday, December 4, 2010

बर्ड वाचिंग

                                            सुरखाब फोटो साभार राजेश पंवार

सर्दिया शुरू  हुयी और कॉर्बेट पार्क के आस-पास प्रवासी पक्षियों का जमवाड़ा भी शुरू हो गया है. यहाँ उच्च हिमालयी क्षेत्रों और तिब्बत से प्रवासी पक्षी यहाँ चले आते हैं. बताया जाता है क़ि यह यहाँ सदियों से आते रहे हैं. पहले इनकी संख्या कितनी थी और अब कितनी है यह तो कहा नहीं जा सकता लेकिन यहाँ हर साल आ जरूर जाती हैं. और इनके आने के साथ ही इनके पीछे-पीछे आ जाते हैं, इनके चाहने वाले. जी हाँ बर्ड वाचर. इन्हें यहाँ पानी में अठखेलियाँ करते देखने के लिए इन बर्ड वाचरों का जमवाड़ा भी यहाँ लगने लगा है.


     यह पक्षी यहाँ कोसी बैराज, कोसी नदी के तट, रामगंगा नदी के तट पर और मालधन चौड के पास तुमडिया जलाशय में देखे जाते हैं. और इन्हें यहाँ देखने के लिए देश-विदेश से सैलानी भी यहाँ आते है. इन्हें जल में जल क्रीडा करते देखने का आनंद लेते और उन्हें अपने कैमरे में कैद करते इन्हें यहाँ आसानी से देखा जा सकता है. ऐसे ही नीदरलैंड से आये एक दल से मेरी मुलाकात कोसी बैराज में हुयी. जो यहाँ सुरखाब पक्षी की जलक्रीडा को देख रहे थे. यह लोग यहाँ राजस्थान के भरतपुर से यहाँ आये थे. भरतपुर में पक्षियों को देखने के बाद वह यहाँ पहुंचे थे. दल के सदस्य रोनोल्ड  ने बतया क़ि वह यहाँ पक्षी के अवलोकन के लिए आये हैं. उन्होंने यहाँ रुडिशल डक, लिटिल इग्रेट, कुछ लिटिल कोर्मोरेंट को देखा. उन्होंने बताया क़ि उनके भरतपुर से आये गाईड आइबिस्बिल को ढूंढ रहे हैं लेकिन वह अभी तक उन्हें नहीं मिली है. वह आशावान थे क़ि उन्हें आइबिस्बिल जरूर दिखेगी.
  रोनोल्ड ने बताया क़ि वह कॉर्बेट पार्क में भी घूमने गए थे. उन्होंने पार्क को बर्ड वाचिंग के लिए अच्छा स्थान बताया. उन्होंने कहा क़ि वह बहुत खुशकिस्मत थे क़ि उनके दल को कॉर्बेट में एक बाघ देखने को मिला.
  इसके अतिरिक्त आपको घायल मिली बाघिन के बारे में बता दू क़ि इस बाघिन ने २८-११-२०१० को पंतनगर में दम तोड़ दिया है. तब विभाग ने इसे वाईल्ड बोअर से संघर्ष में घायल होने की बात की थी, लेकिन इसकी मौत के बाद विभाग ने अपने दिए तर्क से य़ू टर्न ले लिया है. अब विभाग इसके घायल होने के कारणों की जांच की बात कर रहा है. वहीँ इसकी मौत के पीछे विभागीय लापरवाही भी सामने आई है. इसके घायल मिलने के बाद विभाग ने इसे बेहोश करने के बाद सीधे पंतनगर ले जाने की बजाय रामनगर में लाकर रखा गया. जिससे उसके इलाज में विलम्ब हुआ. वहीँ इसे होश में लाने के लिए उसपर बाल्टियों से पानी डाला गया. ठण्ड के इस मौसम में रात भर घायल पड़ी बाघिन पर पानी डालना भी उसके लिए घातक ही साबित हुआ होगा. जिसपर विभाग अब कुछ भी बोलने से कतरा रहा है.
                                      लेखक त्रिलोक रावत रामनगर के युवा पत्रकार हैं.

No comments:

Post a Comment