Sunday, November 21, 2010

सर्दियाँ, सर्पदुली, सैलानी, शादी, शोर-शराबा और संघर्ष

सर्दियाँ, सर्पदुली, सैलानी, शादी, शोर-शराबा और संघर्ष. जी हाँ कुछ वर्षों से कॉर्बेट नॅशनल पार्क के आस-पास की जिंदगी में यह ६ एस प्रवेश कर गए हैं. सर्दियाँ शुरू होते ही कॉर्बेट पार्क खुल जाता है, यहाँ सैलानी आने लगते हैं, यह सैलानी रिसोर्ट्स में रुकते हैं. उनमे से कुछ रिजोर्ट उनके आदेश पर उनके ही आनंद के लिए म्यूजिक नाईट का कार्यक्रम रखते हैं. देर रात तक चलने वाली इन पार्टियों में खूब शोर शराबा होने के साथ ही तेज़ लाईटिंग लाजिमी है, जिससे इन रातों में वनराज अपना शिकार करने से चूक ही जाते होंगे. इसके साथ ही शुरू होता है शादियों का मौसम. जंगल के निकट वह भी कॉर्बेट नॅशनल पार्क की सीमा पर जीवन साथी के साथ सात फेरे, है ना जिंदगी भर याद रखने की बात. शादियां और शोर-शराबा तो चोली-दामन के साथी है, जो लाखों खर्च कर यहाँ शादी करने आया है उसकी शादी में पटाखे और बेन्ड ना बजे तो मजा ही कहाँ है. मंडप को दिवाली की रात की तरह नहीं सजाया जाये तो क्या मजा आएगा, जी हाँ लाईटिंग भी ना भूलने वाली ही होनी चाहिए, और यह सब होता है कॉर्बेट नेशनल पार्क की सर्पदुली रेंज के आस-पास, क्यूंकि रिजोर्ट्स की एक लम्बी चेन सर्पदुली रेंज की सीमा के पास है. जिनके चलते वन्यजीवों का कोरिडोर भी प्रभावित हुआ हुआ है. इन रिजोर्ट्स को कॉर्बेट पार्क प्रशासन,स्थानीय प्रशासन, वन्यजीव प्रेमियों के समझाने मीडिया में खबरें छपने और टेलीकास्ट होने के बावजूद यह अपने मुनाफे के लिए इस तरह के कार्यों में रोक लगाने के लिए तैयार नहीं हैं. जिसका खामियाजा जाने-अनजाने इन भोले-भाले ग्रामीणों को उठाना पड़ रहा है. जिसका सीधा नुकसान हमारे राष्ट्रीय पशु को उठाना पड़ रहा है. कॉर्बेट के आस-पास के रिजोर्ट्स में शादी का सिलसिला कोई बहुत ज्यादा पुराना नहीं है, यह भी करीब २-३ साल से विवाह स्थल में तब्दील हुआ है. इस तरह की गतिविधियों में अभी तो कुछ रिजोर्ट्स ही लिप्त हैं, लेकिन शुरुआती वर्षों के मुकाबले अब इनकी संख्या में इजाफा भी देखा जा रहा है.
   इसके अलावा रामनगर वन प्रभाग का कोसी रेंज भी वन्यजीवों के लिहाज से संवेदनशील है. यहाँ भी बाघों के साथ मानव संघर्ष बढ़ रहा है. यहाँ भी स्थानीय नागरिक हो या सैलानी बाघों को देखने उनके काफी करीब आने का प्रयास करते हैं. जिसके चलते यह बेजुबान हिंसक होते जा रहे हैं , और इसका खामियाजा गरीब ग्रामीणों को उठाना पड़ रहा है.
     सर्दियों में होने वाले इस बढ़ते संघर्ष के बारे में द कॉर्बेट फ़ाउनडेशन के उपनिदेशक डॉ. हरेन्द्र बर्गली और विश्व प्रकृति निधि के समन्वयक डॉ. के डी कांडपाल का मानना है क़ि मानसून सीजन में लोगों की जंगलों में गतिविधि शून्य हो जाति है, और सर्दियों की शुरुआत होते ही मानव की गतिविधियाँ एकदम से जंगल में बढ़ जाती हैं. जिससे बाघ खुद को असहज महसूस करने लगता है, और सामने पड़ने पर हमला कर देता है. वहीँ पार्क वार्डेन य़ू सी तिवारी भी मानते हैं क़ि कॉर्बेट के आस-पास सर्दियों में बाघ मानव संघर्ष बढ़ रहा है, और वह चुनिन्दा क्षेत्रों में ही है.
     

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