Sunday, November 21, 2010

बाघ-मानव संघर्ष २

गत एक सप्ताह में बाघ द्वारा स्थानीय दो महिलाओं को अपना शिकार बना लेने से कॉर्बेट नगरी में सनसनी फैली हुयी है. यह समय वन महकमे, ग्रामीणों के साथ ही कॉर्बेट के प्रकृति प्रेमियों के लिए उच्च तनाव का है. पहली घटना १२ नवम्बर को सुंदरखाल निवासी नंदी देवी पत्नी भागी राम के साथ घटित हुयी. जिसे वन क्षेत्र में अचानक ही बाघ ने हमला कर मार डाला.दूसरी घटना चुकुम गाँव क़ि कल्पना मेहरा के साथ हुयी जिसमे वह भी बाघ के हमले का शिकार हो गयी.

        पहली घटना में सुबह १०.३० बजे के करीब की है. जब यह महिला अपने कुछ महिला साथियों के साथ कॉर्बेट के बफर क्षेत्र में कड़ी पत्ता लेने गयी थी क़ि बाघ ने हमला कर दिया. घटना स्थल एन एच १२१ से करीब ५०० मीटर की दूरी पर था. साथ गयी महिलाओं के गाँव में पहुंचकर सूचित करने पर ग्रामीण और वनकर्मी जंगल में गए जहाँ, तलाश करने पर उसका शव घटना स्थल से करीब ५०० मीटर दूरी पर मिली. जिसे उसने एक झाडी में छिपा दिया था. तलाश किये जाने तक इसने महिला के कुल्हे का कुछ भाग खा लिया था. और उसका दाहिना पैर भी चबाया था.वाहन उसकी गर्दन पर दांतों के गहरे निशान थे. जो एक विशिष्ट तरीका है क़ि बाघ अपने शिकार को कैसे मारता है.

        दूसरी घटना सुबह करीब ८.३० की बताई जा रही है जब चुकुम गाँव की एक महिला १८ नवम्बर २०१० को रामनगर वन प्रभाग के कोसी रेंज के कुंखेत के कक्ष संख्या एक में अपने साथियों के साथ घास लेने गयी थी. महिला कल्पना पत्नी प्रेम सिंह जब घास काटने में ब्यस्त थी तभी एक बाघ ने उस पर हमला कर दिया. साथ गयी सहमी महिलाएं तुरंत गाँव की ओर दौड़ी, और ग्रामीणों की घटना की जानकारी दी. ग्रामीणों के पहुँचने तक बाघ मृतका को करीब १०० मीटर दूर घसीट कर ले गया था, और उसने उसके कमर के नीचे का कुछ भाग खा भी लिया था. घटनास्थल गाँव से करीब ४ किलोमीटर दूर था. और १२ नवम्बर वाले घटनास्थल से करीब ६-७ किलोमीटर दूर था. यहाँ भी मृतका के गर्दन के दोनों ओर दांत के निशान मौजूद थे. पहले बाघ ने महिला पर पीछे से हमला किया, और अपने जबड़े से उसकी गर्दन और सिर पकड़ लिया. फिर उसे सामने की ओर से पकड़ा गया होगा और उसकी गर्दन को तोड़ दिया. जो लोग बाघ के ब्यवहार के बारे में जानते हैं, वह इस गरीब की स्थिति को समझ सकते हैं. इन महिलाओं के पास बचने का कोई रास्ता ही नहीं बचा था. बाघ आमतौर पर मानवों से डरते हैं, और वह हमें पसंद नहीं करते. दिसम्बर २००८ से कॉर्बेट के आस-पास बिल्ली परिवार द्वारा यह महिलाओं को मारने की चौथी घटना है.
       कॉर्बेट क्षेत्र के आस-पास हाल में मानव-बाघ संघर्ष की घटनाएँ बढ़ी है, और इसके लिए कई कारक हैं. बढ़ते दबाव के कारण व विभिन्न कारणों की वजह से बाघों के ब्यवहार में परिवर्तन के बारे में एक गंभीर अध्ययन की आवश्यकता है. हमें वास्तविक कारणों में जाने की जरूरत है. और समाधान खोजना होगा जिससे क़ि भविष्य में इस तरह की घटनाएँ रूक सकें. हम स्थानीय समर्थन के बिना वन्यजीव संरक्षण के बारे में सोच भी नहीं सकते.
       हमारे ग्रामीण अपने जीवन यापन के लिए जंगलों पर अत्यधिक निर्भर हैं. सीमित आय स्रोतों और खेती के लिए कम भूमि के चलते उनकी निर्भरता जंगलों में ज्यादा है. इसके साथ ही खाना बनाने के लिए लकड़ियों की आवश्यकता भी उन्हें जंगल जाने के लिए मजबूर करती हैं. और बदकिस्मती से इस क्षेत्र में यह सारे कार्य महिलाओं द्वारा ही सम्पादित किये जाते हैं, जिसके कारण वह जंगल का रूख करती हैं. जहाँ उनका सामना इन जानवरों से यदा-कदा हो ही जाता है.
       वक्त का तकाजा है क़ि सरकार और इस क्षेत्र में कार्य कर रही स्वयंसेवी संस्थाए इस ओर आगे बढ़ के आये, और अभ्यारण्यों के आस-पास निवास करने वाले ग्रामीणों की आजीविका के वैकल्पिक स्रोतों को तलाश करें. जिससे क़ि उन्हें वनों की ओर कम से कम जाना पड़े, साथ ही उनके जीवन का स्तर ऊँचा हो सके,और वह इन वन्य जीवो को अपना दोस्त समझें ना क़ि दुश्मन, यदि टकराव की स्थिति यही बनी रही तो हो लिया संरक्षण.
       राष्ट्रीय पशु हमारे देश का गौरव है, हमें गर्व है क़ि इसकी सबसे ज्यादा तादाद हमारे ही देश में है. बाघ पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण जीव है. हम इसे इस तरह मरने के लिए नहीं छोड़ सकते. बाघ द्वारा किसी को मारे जाने के बाद उसे आदमखोर घोषित कर मारने की मांग करना भीजायज ही है, क्योंकि उसने उनका प्रियजन उनसे छीन लिया होता है. लेकिन किसी की मौत के बाद उसे आदमखोर घोषित करने की मांग के पीछे यह विश्वास भी होता है क़ि इसने मानव मांस खा लिया है. और अब वह मानव को अपने शिकार के रूप में देखता है. कुछ हद तक यह बात ठीक है लेकिन ऐसा भी नहीं है क़ि बाघ एक बार मानव को मारकर बाकी कुछ भी खाना छोड़ कर आदमी के पीछे ही पड़ जाता है. बाघ का ऐसा करना उसके साथ-साथ मानव के लिए भी ठीक नहीं होता है, इसलिए बाघ मानव से हमेशा दूरी बना कर ही चलता है. और अधिकांश बार यह आक्रमण बाघ द्वारा खुद को बचाने के लिए ही होते हैं. शिकार सामने हो तो वह उस शव को खाने से भी गुरेज नहीं करता.
         अगर हम सब वास्तव में बाघों को बचाना चाहते हैं तो हम सभी को उनके संरक्षण से सम्बंधित समस्याओं से मजबूती से निपटने की जरूरत है. इस तरह की समस्याओं से निपटने के लिए वन विभाग और ग्राम-समुदाय के बीच एक बेहतर समझ की जरूरत है. ऐसी स्थितियों को सम्हालने की योजना बने, जिस पर शीघ्र कार्यवाही होनी चाहिए. हम पैसे से मानव जीवन की भरपाई नहीं कर सकते. लेकिन हमें मृत ब्यक्ति के परिवार का समर्थन करना चाहिए, और कर भी सकते हैं.
        मेरी सहानुभूति उन परिवारों के साथ है जिन्होंने अपने परिवारों के सबसे महत्वपूर्ण सदस्यों को खो दिया है. दोनों महिलाएं अपने पीछे छोटे-छोटे बच्चो को छोड़ गयीं हैं. भगवान् दोनों परिवारों को इस अथाह दुःख से उबरने की शक्ति दे.
                                                             लेखक संजय छिम्वाल वन्यजीव प्रेमी हैं

3 comments:

  1. डेमोग्राफिक परिस्थितियां भी जिम्मेदार हैं..

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  2. We need measures for self employment and reduced dependency on the forest, especially for the people living in buffer zone.

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  3. sanjay bhai...apke bicharon se mein sahmat hoon...humari sarkarein jab tak koi solid plan reserve forest ke aas-pass ki community ko sath mein lekar nahi banayegi tab tak yeh chalta rahega..manav jeevan bahut amulya hai, kintu hum es baat se bhi enkar nahi kar sakte ki vanya jeev bejuwan hai aur uski jarurato ko hum nahi samajh pa rahe hai..manav uska priya bhojan nahi hai lekin yada kada woh es tarah ka byowhar kar deta hai jiske liye woh puri tarah se jimmedaar nahi kaha ja sakta hai....bina community ko sath lekar koi hal nahi ho sakta hai..aur haan hume yah bhi dhyan rakhna hoga ki es mudde par rajniti na ho....

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