Sunday, October 3, 2010

हाथी दिवस




इन दिनों देश में वन्य प्राणी सप्ताह मनाया जा रहा है. यह सप्ताह १ अक्टूबर से ७ अक्टूबर तक मनाया जाता है. कॉर्बेट नेशनल पार्क में हर साल इसके तीसरे दिन को एलिफेंट डे के रूप में मनाया जाता है. देश में हाथियों की तेज़ी से कम होती संख्या को देखते हुए इसे भी बाघ और गैंडे की तरह ही अनुसूची में रखा गया है. कभी देश के जंगलों में लाखों की संख्या में विचरण करने वाले हाथियों की संख्या २००२ की गणना के अनुसार केवल २६४१३ में आकर सिमट गयी है.  हाथियों की घटती संख्या के बाद देश में इसके संरक्षण की आवश्यकता महसूस की गयी. इसके लिए फरवरी १९९२ में प्रोजेक्ट एलिफेंट की स्थापना की गयी. जिसमे १३ राज्यों को शामिल किया गया है.
       उत्तराखंड में २००७ की गणना के अनुसार १३४६ थी. जिसमे से ६२२ हाथी कॉर्बेट में पाए गए थे. हाथी के दांत ही हाथी की जान के दुश्मन बन गए हैं. इनके दांतों की तस्करी के चलते इन्हें बेमौत मारा जाता रहा है. इसके अलावा घटते जंगल और बढ़ती मानव लालसा भी इनके राह का रोड़ा बन रही है. जगह जगह जंगलों को काट कर बस रही मानव आबादी ने इनके पीढ़ियों से चले आ रहे रास्तों में बाधा डाल दी है. जिससे इनके आवागमन के रास्ते धीरे धीरे बंद होते जा रहे हैं. जगह-जगह बने रेलवे ट्रैक ने भले ही मानव जिन्दगी को रफ़्तार दी हो लेकिन इन्होने गजराजों के पैरों में बेड़िया ही डाली हैं.  इतनी सारी दिक्कतों का सामना कर रहे गजराज अब हाथी की चाल चल भी पाते होंगे यह कहना अब मुश्किल है.
     यह सब वह वास्तविक दिक्कते हैं जिनका सामना प्रतिदिन हाथी को करना पड़ता है. इन सब के चलते अब मानव और हाथियों में संघर्ष की घटनाओ में तेज़ी से बढ़ोत्तरी हो रही है. जिसका खामियाजा भी इन बेजुबानो को ही उठाना पड़ रहा है. हालात यही रहे तो वह दिन दूर नहीं जब हाथी भी सिर्फ चिड़ियाघरों में ही देखने को मिलेगा. इस सब को ध्यान में रख कर अब इनके प्रति लोगों को जागरूक करने पहल शुरू की गयी है. जिसमे हर वर्ष ३ अक्टूबर को रामनगर में हाथी दिवस के रूप में मनाया जा रहा है. इसमें स्कूली बच्चों को हाथी के बारे में जानकारी दी जाति है. इसमें बच्चों को बताया गया क़ि पहले दुनिया में हाथियों की आठ प्रजातियाँ पायी जाति थी. लेकिन मानव भूलों के चलते अब यह दो प्रजातियों में सिमट गया है. जिसमे एक अफ्रीकन व दूसरा एसियन हाथी के रूप में ही बचे हैं. एशियाई हाथी भारत, श्रीलंका, बर्मा समेत दस देशों में पाया जाता है. एशियाई हाथी की अन्य विशेषताएं.........
पूर्ण विकसित हाथी का वजन ६७५० किलोग्राम और ऊँचाई ९ फीट नर,  ८ फीट मादा
बाहरी दांत (टस्क) नर हाथी में ही होते हैं, बिना टस्क के नर को मखना कहते हैं.
यह मैदानी क्षेत्रों से १२०० फीट की ऊँचाई तक देखे गए है. समुचित पानी इनके वास स्थल के लिए आवश्यक है.
विकसित हाथी एक दिन में २७० से ३२० किलो तक घास खाते हैं.
हाथी सामाजिक प्राणी है, प्रमुख मादा दल का सञ्चालन करती है. झुण्ड का आकर ५ से ६० हाथियों का हो सकता है. परिवार के बड़े नर प्रणयकाल को छोडकर झुण्ड से दूरी पर विचरण करते हैं.
इनका प्रणयकाल गर्मी के महीनो में होता है, मादा का प्रसवकाल २०-२२ महीने होता है.नवजात शिशु ८५ सेमी. ऊँचा व ९० किलो वजन का होता है. सामान्यतया एक प्रसव में एक ही शिशु जन्म लेता है.
भारत में इनका शिकार अनादिकाल से इनके दांतों के लिए होता है. जिनका प्रयोग मूर्तियाँ बनाने में किया जाता है.
एक स्वस्थ व विकसित नर हाती के दोनों दांतों का वजन ४५.५ किलोग्राम तक होता है.
अभिलेखों में दर्ज सबसे ऊँचा हाथी १० फीट ८ इंच व सबसे बड़े दांत ३ फीट १०.५ इंच है.
भारत सहित विश्व के अधिकांश देशों में हाथी के शिकार व दांतों के ब्यापार पर रोक है.
हाथी वनों के पुर्नजनन में महत्वपूरण भूमिका निभाते हैं.
आइये प्रकृति के इस महत्वपूर्ण प्राणी को बचाने का संकल्प ले. जय हिंद.



1 comment:

  1. Subhash Chandra Vashishth- Thanks for sharing this Govind. This seems a timely blog. Yesterday, another elephant in Orrissa was found dead. The enforcement machinery has to be strengthened indeed!

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