Friday, September 17, 2010

साम्भर डियर

ट्रांसपोर्ट नगर के पास आया साम्भर (ऊपर ),उफनाई कोसी (नीचे)
रामनगर और उसके आस-पास का क्षेत्र अभी दुर्लभ वन्यजीवों के लिए जाना जाता है. मेरा यहाँ अभी लिखने का मतलब साफ़ है अभी जाना जाता है आगे और कितने दिन जाना जायेगा यह मुझे नहीं पता. क्यूंकि जिस तेज़ी से दुर्लभ वन्य जीव कम हो रहे हैं उसमे पता नहीं कभी यहाँ वन्यजीव हो भी क़ि नहीं खासकर दुर्लभ वन्यजीव. शुक्रवार को रामनगर के ट्रांसपोर्ट नगर के पास एक मेल साम्भर डीयर आ पहुंचा. यह वन्यजीव अमूमन यहाँ आते रहे होंगे. लेकिन वन्यजीवों के लिए आजकल भारी बारिश एक आफत से कम नहीं है. इस बारिश के चलते कोसी नदी अपने पूरे उफान पर है, जिस कारण वन्यजीवों का कोसी पार करना मुश्किल हो चला है. जिसके कारण यह प्राणी रात को शहर की ओर तो आ जाते हैं लेकिन सुबह से चलता ट्रेफिक और कोसी नदी इन्हें जंगल वापस जाने में बाधक बन रही है. जिससे इनकी सुरक्षा को खतरा पैदा हो गया है. इनके इस तरह फंस जाने के बाद वन विभाग को सूचना दिए जाने पर भी उनका कोई कर्मचारी उसकी सुरक्षा को तैनात नहीं किया जाता. जो काफी अफसोसजनक है. मैंने सबसे ऊपर जो लाइन लिखी है, वो वन महकमे की उदासीनता को लेकर ही लिखी हैं क़ि यदि वन्यजीवों के प्रति विभाग का यही रव्वैया रहा तो वह दिन दूर नहीं जब यहाँ ना वन रहेंगे और ना ही वन्यजीव.विभाग को इस बाबत कई पत्रकारों के अलावा क्षेत्र में कार्य कर रहे एनजीओ के सदस्यों ने भी सूचना दी थी. फिर भी विभागीय लापरवाही और सीमा विवाद इस पर आड़े आता दिखा.
                 

प्रदर्शन करती महिलाएं(ऊपर),गड्ढों की सड़क (नीचे)
       अब चर्चा करते हैं एक दूसरे मुद्दे पर, जो इस साल उत्तराखंड का ज्वलंत मुद्दा रहा है. जी हाँ हम बात कर रहे हैं चुगान की जिसकी अनुमति इस साल यहाँ नहीं मिल पाई. जिसके चलते यहाँ की नदियों से चुगान नहीं हो पाया. लेकिन वास्तविकता इससे बिलकुल अलग है, चुगान की अनुमति नहीं मिलने के बावजूद देवभूमि की नदियों से जमकर ना सिर्फ खनन हुआ है बल्कि ऑफ सीजन में भी चल ही रहा है. बिना अनुमति के खनन से, खनन माफियाओं की तो मानो पौ बारह हो गयी है. इन्हें जहाँ राज्य सरकार को रोयल्टी नहीं देनी पड़ रही है वहीँ यह लोग जरूरतमंद से इसके दुगुने-चौगुने दाम ब्लैक में वसूल रहे हैं. जिससे माफियाओं की चांदी कट रही है, वहीँ इसके चलते इन नदियों के पास रहने वाले ग्रामीणों की जान सांसत में आ फंसी है. छोई गाँव के ग्रामीण दाबका नदी के किनारे रहने का खामियाजा भुगत रहे हैं. इन ग्रामीणों क़ि यदि माने तो इस अवैध खनन के चलते जहाँ इनकी रातों की नींद हराम हो गयी है वहीँ इनके दिन का चैन भी इनसे छीन गया है. यहाँ रात भर ट्रकों में नदी से माल भरा जाता है, और यह सिलसिला दिन में भी जारी रहता है. रात भर इनके शोर गुल से जहाँ यह सो नही पाते वहीँ दिन में इन भरे हुए ट्रको, ट्रैक्टरों और डंपरों की अनियंत्रित गति से हमेशा हादसों का डर बना रहता है. इस सब के चलते उनके गाँव के लिए बनी नयी सड़क का बेडा गर्क हो गया है. जिसकी शिकायत भी ग्रामीणों द्वारा वन विभाग, प्रशासन और पुलिस को की गयी. लेकिन दिन रात हो रहे इस अवैध खनन की ओर सभी ने आँखे मूँद रखी हैं. जिससे ग्रामीणों का सब्र अब जवाब देने लगा है. शुक्रवार को यहाँ की महिलाओं ने यहाँ गन्ना सेण्टर के पास जाम लगा के अवैध खनन का विरोध किया. उनकी मांग है क़ि उनकी नयी बनी सड़क अवैध खनन के चलते बदहाल हो गयी है. जिसमे कई जगह बड़े-बड़े गड्ढे पड़ गए हैं. जिस कारण गाँव के बीमार लोगों को ले जाने के लिए अम्बुलेंस भी नहीं आ पा रही है. जिससे उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. उनकी मांग है क़ि उनकी सड़क शीघ्र दुरुस्त कर इस खनन को नहीं रोका जाए.अन्यथा वह उग्र आन्दोलन को बाध्य होंगी.   


1 comment:

  1. are yar tum to 1 dear ko lekar pareshan ho. forest dptt. ka bas nahi chalta, vo to sare animal ko hi kill kare. chinta aapki jayaj he, aske siwa ham na to kuchh kar sakte he auor na hi kar rahe he.....

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