Sunday, August 29, 2010

mudda!

नदियों का पर्यावरण से गहरा सम्बन्ध है. आदिकाल से मानव नदियों के किनारे अपना बसेरा बनाता आया है. इन नदियों ने मानव को जहाँ जीवनदायिनी जल दिया है. और इन नदियों के जल से उनकी कृषि भी काफी उपजाऊ होती थी. वहीँ यह नदियाँ मानव को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने का भी साधन रही है. कालांतर में इन नदियों से मानव ने उपखनिजों का दोहन करना भी शुरू कर दिया. पहले यह दोहन अपनी जरूरत के मुताबिक किया जाता था. लेकिन मानव की बढ़ती लालसा ने इस दोहन की मात्रा को धीरे धीरे बढ़ा दिया. अब इसने एक कारोबार का रूप ले लिया है. जिसमे कई लोगों का रोजगार जुड़ा हुआ है. इस काम में रामनगर जैसे नगरों में ही हजारों लोग जुड़े हुए हैं. इस साल केंद्र सरकार ने उत्तराखंड की नदियों से चुगान की अनुमति नहीं दी. जिसके चलते यहाँ हजारों परिवारों का रोजगार जाता रहा.
      मुझे किसी रघुवीर सिंह रावत का एक पत्र प्राप्त हुआ है. यह सज्जन लिखते हैं क़ि १८५७ में अंग्रेजों के आने के बाद उन्होंने देश पर अधिकार कर लिया. लेकिन उन्होंने भी जंगल और नदियों के कुछ अधिकार गाँव वालों को दिए थे. नदियों में चुगान होने से नदियाँ राह नहीं बदलती. नदियों के रास्ता बदलने का उदाहरण दाबका नदी जो पूर्व में बैलपडाव के पूर्व में बहती थी बाद में इस नदी ने अपनी राह बदल दी.जो अब छोई क़ि तरफ बहती है. चूँकि नदियाँ पहाड़ों से आती हैं इनके साथ बहुत सी सिल्ट भी आती है. जिससे साल दर साल नदियों के मैदानी इलाकों के रास्तों पर सिल्ट जमा होती चली जाती है. जिस कारण नदियाँ अपनी राह बदल लेती हैं. यदि इन नदियों में मैदानी इलाकों में चुगान होता रहे तो नदी का मार्ग साफ़ बना रहता है और नदी अपना रास्ता नहीं बदल सकती. जिससे कई आपदाओ से भी सुरक्षा होती है. इस चुगान से सरकार को भी राजस्व के रूप में करोड़ों रूपये मिलते हैं. साथ ही हजारों हाथों को काम भी मिलता रहता है.
    नदी नहीं खोलने से इस वर्ष जहाँ सरकार को करोड़ों के राजस्व से हाथ धोना पड़ा वहीँ नदियों से जम कर उपखानिजों की चोरी भी हुयी है. यहाँ दिक्कत यह है क़ि चुगान की अनुमति मिलते ही लोग खनन पर उतारू हो जाते हैं. जिससे नदियों के बेड का ही बंटाधार हो रहा है. जिसके चलते नदियों में मानव निर्मित पुल आदि को ही खतरा पैदा होने लगता है. अब मुद्दा यह क़ि प्रदेश की नदियों में चुगान होना चाहिए या चुगान  होना ही नहीं चाहिए, या चुगान नियंत्रित होना चाहिए इस मुद्दे पर एक सार्थक बहस की आवश्यकता है.

3 comments:

  1. sir chugan karate karate yeh log ab khanan karane lage hain. es kaam me lage jyadatar log dabang hain. yeh khanan chor hain. jinhe ab aam bolchal kee bhasha me mafia kaha jata hai. in mafia logon ke sambandh seedhe satta ke kareebi logon se hote hain. me to bharat sarkar ka dhanywad dunga ki es baar unhone yahan chugan kee anumati nahi dee. jisse yeh to pata chala ki nagar ke prayvaran ko dushit kar labh lene walon me kaun-kaun shamil hain. aapke es blog ko shuru karne ke liye bahut-bahut badhayi. asha hai es blog se logon ko vanya jeevan aur prayavaran ko samjhane me aasani hogi. es blog me mai aapka poorn sahyog karane ka vachan deta hoon. yeh ek anutha kaarya hai. bhagwan aapko es punya karya me sahyog de.
    with regards,
    Mayank Tiwari, Ramnagar.

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  2. avedh khanan ki jo vibhisisika tarai jhel raha hai kahi wahi hal baki jagah ka na ho. sarkar ko chahiye ki kewal chugan ki hi anumati di jaye.us pe bhi kadi nazar rakhne wale aadhikari tainat ho.thanks govind da nai jankari dene wale blog ko shru karne ke liye. blog ki sarthakta bane rhe. subahkamnawon ke sath aapka
    chandan bangari

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  3. जब सैंया भये कोतवाल तो फिर dar काहे का ? ..अवैध खनन करने वालो का शयद यही सूत्रवाक्य है
    सत्ता के संरक्षण में चल रहे अवैध खनन के काले कारोबार से करोडपति बनाने वालो की गिनती बढती जा रही है . गिर्दा याद आते हैं
    महल चोबारे बह जायेंगे खली रोक्हड़ रह जायेंगे
    बोल व्यापारी तब क्या होगा ? दिल्ली देहरादून में बैठे योजनकारी ..तब क्या होगा ?

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