Monday, June 3, 2013

बाघ और फिक्सिंग

      आज बहुत दिनों बाद फिर ब्लॉग लिखने बैठा हूँ। इस बीच ब्यस्तता कुछ ज्यादा ही रही। इसके साथ ही आई पी एल का भी बुखार देश में चढ़ा हुआ था। आई पी एल में फिक्सिंग का साया ऐसा चढ़ा की अभी तक सब इस बुखार की चपेट में ही हैं। अभी NDTV में रविश की रिपोर्ट देख रहा था। तो वहा भी इसी फिक्सिंग की चर्चा चल रही थी। मैं भी फ़िक्सिंग के सोच में पड़ गया। मैं सोचने लगा की कहाँ फिक्सिंग नहीं है। सोचते सोचते लगा कि देश ही फिक्सिंग में चल रहा है। जो फिक्स नहीं होता वह समाज से बाहर होता सा लगता है, या उसे विद्रोही करार देने की कोशिश होती है। और जो पकड़ा जाता है वह फिक्सर बन कर सबसे बड़ा विलेन बन जाता है। इस देश में किस की बोली नहीं लगती, और आई पी एल तो शुरू ही खिलाडियों की बोली से होता है। खैर साहब हमारा ब्लॉग तो वन्यजीवों के लिए है, जिस की कोई बोली ही नहीं होती  ......... लेकिन मुझे लगता है कि फिक्सिंग तो यहाँ भी है भाई ......... लेकिन आपको यकीं दिलाता हूँ कि यह ब्लॉग अभी फिक्सिंग से दूर ही है ......... तो बोली के लालच से दूर आपको वन्यजीवों की दुनिया की खबर से रु ब रु करते हैं .......

        कॉर्बेट लेंड स्केप एक हफ्ते से भी कम समय में तीन बाघों के शव बरामद हुए। और मजे की बात यह है कि यह तीनो शव सड़े-गले बरामद हुए। ऐसा लगा कि बाघ भी मरते-मरते वन विभाग से फिक्सिंग कर गए कि मरने के बाद मिलेंगे भी तो इस हालत में मिलेंगे कि हमारी मौत का कारण भी किसी को पता न चल सके। अब मीडिया के लोग इसेबाघों का कब्रगाह करार देने में लगे हैं। उनमे मैं भी शामिल हूँ। पहला शव २७ मई को कॉर्बेट पार्क की ढेला रेंज में बाघिन, दूसरा २९ मई को तराई-पश्चिमी वन प्रभाग के आम्पोखारा रेंज में बाघ, और तीसरा भी १ जून को आम्पोखारा रेंज में ही मिला। इस बेचारे की हालत तो यह थी कि इसका तो सेक्स का भी निर्धारण नहीं हो पाया। और मजे की बात यह भी कि यह अवैध शिकार को रोकने के लिए कॉर्बेट पार्क द्वारा बनायीं गयी एंटी पोचिंग चोकी से मात्र २५० मीटर की दूरी पर झाड़ियों से ढाका हुआ पड़ा था। मतलब साफ़ था कि शव को छिपाने की कोशिश की गयी थी। डॉक्टर का कहना है कि इन सड़े गले शवों से  इनके मौत का कारन का पता नहीं चल सकता।

2 comments:

  1. Very sad mews......Corbett is becoming hotspot for tiger poaching. Govt have to think about its protection as well as provide alternate livelihood for traditional poacher communities like Kanjar tribe and to aware local people about wildlife conservation.

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  2. मेरी एक आत समझ में नही आती? कि इतना सब कुछ होते हुए भी बाघ मर रहे है, कैमरा ट्रक भी लगाए गये हैं, पग मार्क भी लिए जाते है, सुबह शाम हाथी पर बैठ कर काॅम्बिंग भी कि जाती है, कोर जोन में पर्यटको को नही जाने दिया जाता है कहा जाता है कि बाघ के आराम में खलल पड़ जायेगी, सुरक्षा कर्मी केवल क्या दिखावे के लिए रखे जाते है मेरी यही बात समझ में नही आती है। तीन बाघों में नर है या मादा है इसका भी पता नही?

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